शनि चालीसा आरती | Shani Chalisa Arti

शनि चालीसा

प्रातःकाल ही स्नानादि से निवृत्त होकर साफ व सूती वस्त्र पहनें। फिर लकड़ी के पटरे पर काला कपड़ा विष्ठाकर, उस पर शनिदेव की मूर्ति या चित्र को रखें। स्वयं ऊन के आसन पर बैठें। फिर सरसों के तेल का दीपक जलाकर शनिदेव का पूजन करें और मीठी चीज का भोग लगायें। फिर ‘तांत्रिक शनि यंत्र’ का दर्शन करके मंत्र पढ़ें।-

नीलाजिनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् । छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ॥

 इसके बाद चालीसा का पाठ करें और फिर शनिदेव को प्रणाम करें। शनिदेव की मूर्ति या चित्र न मिलने पर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके और दीपक जलाकर यह क्रिया की जा सकती है।

श्री शनि चालीसा..

श्री शनि चालीसा

॥दोहा॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।

दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ॥

जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।

करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥

चौपाई

जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥

चारि भुजा तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥

परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥

कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै। हिये भाल मुक्तन मणि दमकै ॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल विच करें अरिहिं संहारा ॥

पिंगल, कृष्णा छाया नन्दन। वभ्रु कोणस्थ रौद्र दुख भंजन॥

सौरि मन्द शनी दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥

जापर प्रभु प्रसन्न हुई जाहीं। रंकहु राव करें क्षण माहीं ॥

पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत ॥

राम मिलत बन रामहिं दीन्हा। कैकेइहुं की मति हरि लीन्हा॥

बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥

लखनहिं शक्ति विकल करि डारा। मचि गयो दल में हाहा कारा॥

रावण की गति मति बौराई। रामचन्द्र सों बेर बढ़ाई ॥

दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग वीर को डंका॥

नृप विक्रम पर जब पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥

हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी ॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलुहिं घर कोल्हू चलवायौ ॥ 

विनय राग दीपक महीं कीन्हो । तब प्रसन्न प्रभु ये प्रभु मुख दीन्ही ॥

हरिश्चन्द्रहुं नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी ॥

वैसे नल पर दशा सिरानी। मूंजी-मीन कूद गई पानी॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥ 

तनिक बिलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा ॥

पाण्डव पर वै दशा तुम्हारी। सभा बीच द्रौपदी होति उघारी॥

कौरव की भी गति मति मारी। युद्ध महाभारत करि डारी॥

रवि मुख महीं धरि तत्काला। लेकर कूदि पर्यो पाताला॥

शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥

वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥

जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥ 

गर्दभ हानि करै बहु काजा । सिंह सिद्धकर राज समाजा॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी॥

तैसेहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चांदी अरू ताँमा॥

लौह चरण पर जब प्रभु आवें। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावें ॥

समता ताम्र रजत सुभकारी। स्वर्ण सर्व सुख मंगल पर भारी ॥

जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥

अद्भुत नाथ दिखावै लीला। करें शत्रु के नस बलि ढीला ॥ 

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥

पीपल जन शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ॥

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥ ॥

दोहा ॥

पाठ शनिश्चर देव को, करै जो नित मन लाय।

दूर होवें कष्ट सभी, औ भवसागर तर जाय ॥ 

 

॥ श्री शनिदेव जी की आरती ॥

जय जय जय शनिदेव भक्तन हितकारी।

सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥

श्याम अंग वक्र दृष्टि चतुर्भुजा धारी।

नीलाम्बर धारी नाथ गज की असवारी ॥

किरीट मुकुट शीश रजित दीपत है लिलारी।

मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी ॥

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।

लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥

देव-दनुज ऋषि-मुनि सुमिरत नर-नारी।

विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तिहारी ॥

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