Raja surth Ki Katha | राजा सुरथ की कथा लिरिक्स हिन्दी

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राजा सुरथ की कथा लिरिक्स हिन्दी

राजा सुरथ एवं समाधि वैश्यको देवी-दर्शन

Raja surth Ki Katha | राजा सुरथ की कथा लिरिक्स हिन्दी

प्राचीन समयकी बात है। स्वारोचिष मन्वन्तरमें सुरथ नामके एक परम धार्मिक राजा थे। वे परम उदार थे तथा प्रजाका पुत्रवत् पालन करते थे। दुर्योगवश उनके मन्त्री शत्रुओंसे मिल गये और शत्रुओंने उन्हें पराजित करके उनका राज्य छीन लिया। निराश होकर राजा सुरथ वनमें चले गये। एक दिन वे भूख-प्याससे व्याकुल अवस्थामें परम तपस्वी सुमेधा मुनिके आश्रममें पहुँचे। मुनिके पूछनेपर उन्होंने अपनी सम्पूर्ण कथा बतायी। दयालु मुनिने उनका यथोचित सत्कार किया और उन्हें आश्रममें आश्रय प्रदान किया।

 

एक दिन महाराज सुरथ एक वृक्षके नीचे बैठकर अपने खोये हुए राज्य एवं परिवारके विषयमें चिन्तन कर रहे थे। इतनेमें ही वहाँ एक वैश्य पहुँचा। उसका नाम समाधि था। उसके पुत्रोंने उसकी सम्पत्ति छीन लिया था और उसे घरसे निकाल दिया था। परस्पर समान दुःखसे दुःखी होनेके कारण थोड़ी ही देरमें राजा और वैश्यमें प्रगाढ़ मैत्री हो गयी। फिर दोनों अपने शोक-निवारणका उपाय पूछनेके लिये सुमेधा मुनिके पास गये। उस समयमें वे परमादरणीय ऋषि आसन लगाकर शान्त बैठे थे। राजा और वैश्यने मुनिके चरणोंमें प्रणाम किया और अपने कल्याणका उपाय पूछा।

 

सुमेधा मुनिने कहा – ‘वत्स! कल्याण चाहनेवाले पुरुषोंको चाहिये कि मन, वचन और कर्मसे भगवती महामायाकी आराधना करें। भगवती आदिशक्तिकी आराधनासे मनुष्यकी समस्त कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। भगवतीकी कृपासे सुख, ज्ञान और मोक्ष सब कुछ सहज ही सुलभ हो जाता है। भगवतीकी प्रसन्नताके लिये नवरात्र व्रत, भगवतीका पूजन, नवार्ण-मन्त्रका जप तथा हवन करना चाहिये। नवरात्र व्रत सम्पूर्ण व्रतोंमें श्रेष्ठ है। इस व्रतको करनेसे प्राणी समस्त सुखोंके भागी हो जाते हैं। तुम दोनोंको विधिपूर्वक भगवती महामायाकी आराधना करनी चाहिये। भगवतीकी कृपासे तुम्हारी विघ्न-बाधाएँ दूर हो जायेंगी। भगवतीकी भक्ति ही संसारके समस्त रोगोंकी परम औषधि तथा संसार-सागरसे उद्धारका सर्वोत्तम मार्ग है।’

 

इस प्रकार सुमेधा मुनिसे उपदेश प्राप्त करके राजा सुरथ और समाधि वैश्य एक श्रेष्ठ नदीके तटपर गये, वहाँ उन्होंने एक निर्जन स्थानपर बैठकर भगवतीके मन्त्रका जप और ध्यान करना प्रारम्भ कर दिया। तपस्या करते हुए एक वर्षका समय पूरा हो गया। अबतक वे कुछ फलाहार करके जप और ध्यान करते थे। दूसरे वर्ष उन लोगोंने सूखे पत्ते खाकर तपस्या की। तीसरे वर्षकी तपस्यामें उन्होंने सूखे पत्तों और जलका भी त्याग कर दिया। राजा सुरथ और समाधि वैश्यके कठिन तपसे प्रसन्न होकर महामाया भगवतीने उन्हें साक्षात् दर्शन दिया और कहा-‘तुम दोनोंकी तपस्यासे मैं संतुष्ट हो गयी हूँ। तुम्हारे मनकी अभिलाषा पूर्ण करनेके लिये मैं तत्पर हूँ। भक्तो! वर माँगो।’

 

देवीकी बात सुनकर राजा सुरथका सर्वाङ्ग प्रसन्नतासे खिल गया। उन्होंने भगवतीसे अपने शत्रुओंके विनाशके साथ निष्कंटक राज्यकी याचना की। भगवतीने कहा- ‘राजन्! अब तुम घर लौट जाओ। तुम्हारे शत्रु तुम्हारा राज्य छोड़कर लौट जायेंगे। दस हजार वर्षोंतक अखिल भूमण्डलका राज्य करनेके बाद अगले जन्ममें तुम सूर्यके यहाँ जन्म लेकर मनुके पदको प्राप्त करोगे।’

 

सुरथ वैश्यने भगवतीसे भव-बन्धनसे मुक्त करनेवाले विशुद्ध ज्ञानकी माँग की। भगवतीने ‘एवमस्तु’ कहकर वैश्यको भी तृप्त कर दिया। इस प्रकार राजा सुरथ भगवतीके कृपाप्रसादसे समुद्रपर्यन्त समस्त पृथ्वीका राज्य भोगने लगे और समाधि वैश्य ज्ञान प्राप्त करके मुक्तिपथके पथिक बने। भगवतीके पावन कृपाके इस प्रसंगको पढ़ने और मनन करनेसे ज्ञान, मोक्ष, यश, सुख-सभी उपलब्ध हो जाते हैं, इसमें कुछ भी संशय नहीं है।

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