।। राजा चन्द्रदेव पर माता वैष्णो देवी की कृपा।।
राजा चन्द्रदेव पर माता वैष्णो देवी की कृपा सम्पूर्ण कथा लिरिक्स हिन्दी।
प्राचीन काल में जम्मू के राजा चन्द्रदेव बड़े धर्मात्मा तथा दानी थे। उनकी राजधानी जम्मू नगरी थी। उन्होंने कई मन्दिरों का निर्माण करवाया तथा जगह-जगह पर सदाव्रत लगाया। ऐश्वर्य एवं दान आदि में राजा को किसी पकार की कमी न थी, परन्तु दुर्भाग्यवश उनके सन्तान नहीं थी। रानी धर्मवती भी इसी कारण दुःखी रहा करती थी। एक बार राजा चन्द्रदेव अपनी रानी सहित गंगा स्नान के लिए हरिद्वार गए। वहाँ उन्होंने महात्मा हंसदेव जी का प्रवचन सुना और प्रभावित हुए। उन्होंने महात्मा जी से प्रार्थना की कि वह रानी धर्मवती को संतान प्राप्ति का आर्शीवाद प्रदान करें। महात्मा हंसदेव बोले- हे राजन्! आप सन्तान प्राप्ति हेतु सर्वोत्तम चण्डी पाठ सम्पन्न करावें। उसके अतिरिक्त आपके राज्य में चित्रकूट पर्वत की गुफा में भगवती वैष्णो देवी शक्ति का निवास है। वहाँ दर्शन एवं पूजन से मनोरथ पूर्ण होते हैं महात्मा हंसदेव जी के वचन सुनकर राजा चन्द्रदेव राजधानी लौटे। फिर उन्होंने विधिपूर्वक चण्डी पाठ एवम् यज्ञ करवाया। फलस्वरूप भगवती की कृपा से परम रूपवती कन्या प्राप्त हुई, जिसका नाम चन्द्रभागा रखा गया। कुछ समय बीतने पर अत्यन्त तेजस्वी सुन्दर पुत्र ने रानी की कोख से जन्म लिया। राजा-रानी धन्य हो गये।
राजकुमारी के युवा हो जाने पर उसका विवाह महेशपुर के राजकुमार शान्ताकार के साथ किया गया। विवाह में यथा-शक्ति दहेज आदि देकर कन्या को विदा किया। इसके कुछ ही दिन उपरान्त राजकुमार चन्द्रशील के विवाह पर राजा ने महात्मा हंसदेव को जम्मू पधारने तथा युवराज को आर्शीवाद देने का बहुत आग्रह किया। राजा की प्रार्थना स्वीकार करके सद्गुरु हंसदेव जी जम्मू पधारे। विवाह में भाग लेने के लिए राजकुमारी चन्द्रभागा तथा उसका पति शान्ताकार भी आए हुये थे। महात्मा हंसदेव की दृष्टि जब राजकुमारी के मस्तक पर पड़ी तो उन्होंने अपने योगबल से उसका भविष्य जान लिया। सद्गुरु हंसदेव ने राजा चन्द्रदेव को एकान्त में बुलाकर बता दिया कि लड़की आज से सातवें दिन विधवा हो जाएगी। महात्मा जी के वचनों को सुनकर राजा और रानी दोनों ने उनके चरण पकड़ लिये और सुरक्षा का उपाय पूछा। हंसदेव जी बोले-हे राजन् ! जब हरिद्वार में आपसे पहली भेंट हुई थी, उस समय मैंने आपको चित्रकूट पर्वत वासिनी वैष्णवी के विषय में बताया था। वह देवी संकटों से छुटकारा दिलाने वाली है। यदि आपकी पुत्री उनकी आराधना करे तो निवारण होगा। यह सुनकर राजकुमारी चन्द्रभागा ने देवी की आराधना करनी प्रारंभ की। हंसदेव जी के वचनानुसार सातवें दिन राजकुमार शान्ताकार की दुर्घटना होने से मृत्यु हो गई। शोक समाचार चारों ओर फैल गया। राजकुमारी चन्द्रभागा मूर्छित होकर गिर गई। मूर्छा दूर होने पर अत्यन्त विलाप करते हुए प्रतिज्ञा की माता वैष्णो देवी जब तक मेरे पति को पुनः जीवित न कर दें। मैं अन्न, जल, ग्रहण न करूँगी। भूखी-प्यासी रहकर अपने प्राण त्याग दूँगी। नौ दिन तथा नौ रात्रियों तक चन्द्रमागा निरन्त वैष्णो माता की आराधना में निराहार रहकर लगी रही। तपस्या से प्रसन्न होकर दसवें दिन भगवती वैष्णो देवी ने प्रकट होकर दर्शन दिए। शान्ताकार के मृत शरीर पर अमृत छिड़क कर उसे जीवित कर दिया। चन्द्रभागा ने बारम्बार भक्ति करके प्रार्थना की कि हे माता आप की कृपा से मुझे सौभाग्य की प्राप्ति हुई है, अब तो केवल यही अभिलाषा है कि आप हमारे राज्य में निवास करें तथा अपनी कृपा सदैव बनाए रखें। इसी कारण आज भी नारियों घर में देवी पूजन करती है और नौ दिन व्रत रख अपने सुहाग की मंगल कामना करती है। इन्हीं दिनों को नवरात्र कहतें हैं। इनमें तीर्थयात्रा एवं देवीदर्शन का विशेष फल माना जाता है।
।। बालो सच्चे दरबार की जय ।।