हे नाथ जानि, अजान बालक, विश्वनाथ महेश्वरम्।
हे नाथ जानि, अजान बालक, विश्वनाथ महेश्वरम्।
करिके कृपा दीजो दरस अविनाशि शंकर सुन्दरम्।।१।।
आया शरण हूँ आपकी, इतनी अनुग्रह कीजिये।
जय चन्द्रमौलि कृपालु अब तुम दरश मोको दीजिये।।२।।
ले रामनाम निशंक कीन्हों, है गरल आहार तुम।
भव सिंधु से नैया मेरी कर देना भोला पार तुम।।३।।
मनसा वाचा कर्मणों से, पाप-अति हमने कियो।
आयो शरण शरणागती की, सुध नहीं अबतक लियो।।४।।
अब तो तुम्हारे हाँथ है, गिरजापती मेरी गती।
जय पशुपती, जय पशुपती, जय पशुपती, जय पशुपती ।।५।।
मन-मंदबीच निवास करिये, जानि जन सुखराशि तुम।।६।।
लज्जा हमारी राखना शिव आपके ही हाथ है।
तुमसा न कोई दयालु भक्त, कृपालु दीनानाथ है।।७।।
त्रय-ताप मोचन जय त्रिलोचन पूर्ण पारावार जय।
कैलासवासी सिद्धकाशी दया के आगार जय।। ८
शिव दवा के सिन्धु हो, जन हैं शरण जन फेरिये।
करिके कृपा की कोर शंकर दीन जन दिशि हेरये।।६।।
शुभ वेल के कुछ पत्र हैं, कुछ पुष्प हैं मन्दार के।
फल हैं धतूरे के घरे, कुछ संग अछत धारि के।।१०।।
सेवा हमारी तुच्छ है, फल कामना मन में बड़ी।
पर आश मोलानाथ से, रहती हृदय में हर घड़ी।।११।।
हे विश्वनाथ महेश अपनी, भक्ति कृपया दीजिये।
निर्भय निडर निशंक करिये, शक्ति अपनी दीजिये ।।१२।।
हो सत्य-ब्रतधारी हृदय में, भावना ऐसी भरे।
बम बग हरे, बम बम हरे, बम बम हरे, बम बम हरे।। १३
हों सत्य-ब्रतधारी हृदय में, भावना ऐसी भरे,
बम बम हरे, बम बम हरे, बम बम हरे, बम बम हरे ।
मण्डित जटा में गंग धारा, ताप लोको के हरे,
शशिभाल तब यश चन्द्रिका, सबके हृदय शीतल करें।
वर दे वरद वरदानियों, धन-धान्य से धरती भरे,
जय शिव हरे, जयशिव हरे, जयशिव हरे, जय शिव हरे ।