गणेश चालीसा लिरिक्स हिन्दी
।।पूजन विधि।।
प्रातःकाल ही स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ व सूती वस्र पहनें। फिर लकड़ी की चौकी या पटरे पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर गणेशजी की मूर्ति या चित्र को रखें। स्वयं कुश या ऊन के आसन पर बैठें। फिर लाल चन्दन, लाल पुष्प, चावल, धूप-दीप से गणेशजी का पूजन करें और मोदक (लड्डू) का भोग लगायें। फिर ‘तांत्रिक गणेश यंत्र’ का सच्चे हृदय से दर्शन करके यह मंत्र पढ़ें-
गजाननं भूतगणादि सेवितं, कपित्थ जम्बूफल चारु भक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्॥
श्री गणेश चालीसा
॥ दोहा ॥
श्री गुरु चरण सरोज रज, मस्तक लीन्ही चढ़ाय।
चालीसा प्रारम्भ करूँ, सुमिरत शारदा माय॥
जय जय जय सिन्धुर्बदन, गौरी पुत्र गणेश।
मूषक वाहन गणसदन, काटौ सकल कलेश॥
॥चौपाई॥
जै जै जै गिरिजा के लाला। सदा करो सन्तुन प्रतिपाला॥
कानन कुण्डल मुकुट बिराजे । काँधे मूज जनेऊ साजे ॥
गले सोहे पुष्पन की माला। चमके चन्द्र ललाट विशाला ॥
लाल बदन सिन्दूर में राजे । अरुणनेत्र श्रुति अति छवि साजे
पीत बसन गज बदन तुम्हारो। निज भक्तन को नाथ उबारो॥
लम्बी सूंड़ि तुम्हारी स्वामी। शंकर के सुत अन्तरयामी ॥
नाथ चतुर्भुज रूप विशाला। भक्तन को प्रभु करहु निहाला ॥
एक हस्त में परशु साजे । दूजे कर पद्म प्रभु राजे ॥
तीजे हस्त मोदक अति भायो। चौथे कर से अभय बनायो ॥
मूसे की करत असवारी। महिमा अमित अकथनि तुम्हारी ॥
सब सिद्धिन के तुम हो राजा। सुमिरत होय सिद्ध सब काजा ॥
तिहुँ लोक तुम्हरो यश छायो । सोहि निहाल जो तुमको ध्यायो।
पूजन प्रथम तुम्हारो होवे। सकल दुखन-पापन को धोवे ॥
ब्रह्मा विष्णु महेश मनावें। नारद शारद हूँ यश गावें॥
सहस नाम हैं नाथ तुम्हारे। वर्णत शेष सहस्र मुख हारे ॥
लम्बोदर गणेश गणराजा। बिगरे सभी सम्हारो काजा ॥
भादो सुदी चौथ कहलाई। जन्म सुमन तिथि सुन्दर पाई॥
सिद्धि सदन विद्या के भूषण। प्रभु सकल हरिहौ अघ दूषण ॥
सुन्ड द्वार सुन्दर अति नामा। करहु नाथ मम पूरण कामा॥
लाला लालधर लालहिं सूरा। लाल देह पर लाल सिन्दूरा ॥
असुरनिकंदनगणपति जग बंदन,काटहु फन्दन गिरजाकेनन्दन
कालहु खंजन विघ्न विभंजन । विद्या मंजन जन मन रंजन ॥
धरणी धर मधुसूदन गणपति॥ रक्षा करहु नाथ आतुर अति ।
दया दृष्टि दासन पर कीजे ॥ भक्तन के हित दरशन दीजे।
नाम गजाधर और गजानन ॥ एकदन्त तथा विघ्न-विनाशन।
नराधीश नारायन स्वामी ॥ विद्या के घट अन्तरयामी।
महाप्रताप षडानन भैया॥ ज्ञान दिवैया गवरो छैया।
विघ्नेश्वर है नाम तुम्हारौ ॥ अपने जन को नाथ उबारौ ।
विश्व विनायक जय परमेश्वर ॥ प्रणमहु माथ नाय चरणन पर।
जन सुखदायक और जग भर्ता ॥ हरहु कलेश दीन दुःख हर्ता ।
प्रथम पूजे जो जन मन ध्यावै ॥ सो तुरतहिं वांछित फल पावै ।
नित्यानन्द करहु सुखरासी ऋद्धि-सिद्धि सब तुम्हारी दासी।
जय जय जय गणपति जगतारण ॥भक्त उबारण दैत्यप्रहारण।
अम्ब दुलारे तुम रखवारे ॥ प्रभु अनगिनत निज जन तारे।
जो यह पढ़े गणेश चालीसा ॥ निश्चय फल देवे गौरीसा।
श्री गणेश पूजहिं सब आसा ॥ सुख-सम्पत्ति से हो उल्लासा ।
भाद्र चौथ गणपति जब आवे । मन मोदक को भोग लगावे ॥
पूर्ण मनोरथ हो सब काजा।जय जय जय जय गणपति राजा॥
प्रभु हृदय में करहु निवासा। स्वामी ये ही है अभिलाषा ॥
जय गं गं गं गणपति स्वामी। कृपा करहु उर अन्तरयामी
॥दोहा॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै धर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ॥