Bhagwati Ka Durga Name Kaise Padha | भगवती का दुर्गा नाम कैसे पड़ा आइए जानते हैं

दुर्गा नाम कैसे पड़ा

भगवती के ‘दुर्गा’ नामका इतिहास

bhagwati ka durga name kaise padha दुर्गा नाम कैसे पड़ा
BHAGWATI DURGA

भगवती के ‘दुर्गा’ नामका इतिहास

भगवती शताक्षी के द्वारा संसार एवं देवताओं की सुरक्षा और संरक्षण की बात सुनकर दुर्गम दैत्य अत्यन्त कुपित हुआ। वह अपनी सेना के साथ अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर भगवती से युद्ध करने के लिये चल पड़ा। उसके पास एक अक्षौहिणी सेना थी। देवताओं की सारी सेना घेरकर वह दैत्य भगवती के सामने खड़ा हो गया। भगवती शिवाने ब्राह्मणों और देवताओं के चारों ओर तेजोमय चक्क खड़ा कर दिया और स्वयं बाहर निकल आयीं।

 

देवी एवं दुर्गम दैत्य के बीच भयंकर संग्राम प्रारम्भ हो गया। दोनों ओर की बाण-वर्षा से सूर्य- मण्डल ढक गया। देवी के श्री विग्रह से बहुत-सी उग्र शक्तियाँ प्रकट हुईं। कालिका, तारिणी, बाला, त्रिपुरा, भैरवी, रमा, बगला, मातङ्गी, त्रिपुरसुन्दरी, कामाक्षी, तुलजा, जम्भिनी, मोहिनी, गुह्यकाली और दश-सहस्त्रबाहु का आदि नामवाली बत्तीस शक्तियाँ उत्पन्न हुईं। तदनन्तर चौंसठ और फिर अनगिनत शक्तियों का प्रादुर्भाव हुआ। उन शक्तियों ने दानवों की बहुत-सी सेना नष्ट कर दी। फिर दुर्गम स्वयं शक्तियोंके सामने उपस्थित होकर उनसे युद्ध करने लगा। दस दिनों के युद्ध में उस दैत्य की सम्पूर्ण सेनाका संहार हो गया था। इसलिये वह क्रोध और अमर्ष से भरा हुआ था। थोड़े ही समय में उस महापराक्रमी दैत्य ने देवी की सम्पूर्ण शक्तियों पर विजय प्राप्त कर ली। तदनन्तर वह पराम्बा भगवती के सामने अपना रथ ले आया। अब भगवती जगदम्बा और दुर्गम दैत्य के बीच भीषण युद्ध होने लगा। हृदयको आतङ्कित करने वाला यह भयंकर युद्ध दोपहर तक चलता रहा। इसके बाद देवी ने दुर्गम पर पन्द्रह बाणोंका प्रहार किया। दुर्गमके रथके चार घोड़े देवीके चार बाणों के लक्ष्य हुए। एक बाण सारथि को लगा। एक बाण ने दुर्गम के रथ की ध्वजा काट दी। दो बाणों ने दुर्गमके दोनों नेत्र और दोनों भुजाओं को बींध दिया। जगदम्बा के पाँच बाणों ने उस दैत्य की छाती को विदीर्ण कर दिया। अन्त में वह दैत्य रक्त वमन करता हुआ धरती पर गिर पड़ा। उसके शरीर से एक तेज निकलकर भगवती के रूपमें समा गया। उस महान् पराक्रमी दैत्य के मारे जाने से सभी लोग सुखी हो गये।

 

भगवान् विष्णु और शिव को आगे करके समस्त देवता भगवती जगदम्बा की स्तुति करते हुए कहने लगे – सम्पूर्ण जगत्की एकमात्र कारण परमेश्वरि ! शतलोचने! तुम्हें बार-बार नमस्कार है। जो दिव्य विग्रह से सुशोभित हैं एवं जिन्होंने ब्रह्मा, विष्णु आदि को प्रकट किया है, उन भगवती भुवनेश्वरी के चरणों में हम सर्वतोभाव से मस्तक झुकाते हैं। करुणाकी असीम सागर भगवती शाकम्भरी तुम्हारी जय हो।’ आपने दुर्गमको मारकर देवताओंका संकट निवारण किया है, इसके लिये हम सभी देवता आपके प्रति हृदय से कृतज्ञ हैं।

 

ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि देवताओं के स्तवन एवं पूजन से भगवती जगदम्बा संतुष्ट हो गयीं। उन्होंने दुर्गमासुर से छीने हुए वेदोंको देवताओं को सौंप दिया। तदनन्तर उन्होंने ब्राह्मणोंसे कहा- ‘जिसके अभावमें ऐसा अनर्थकारी समय उपस्थित हो गया था, वह वेदवाणी मेरे शरीरसे ही प्रकट हुई थी, अतः सब प्रकारसे इसकी रक्षा करनी चाहिये। मेरी पूजामें संलग्र रहना तुम्हारा परम कर्तव्य है। तुम्हारे कल्याण के लिये इससे श्रेष्ठ कोई उपाय नहीं है। मेरे हाथ से दुर्गम नामक दैत्य का वध हुआ है। अतः आज से मेरा एक नाम ‘दुर्गा’ प्रसिद्ध होगा। करुणा का स्वरूप होने के कारण मैं ‘शताक्षी’ भी कहलाती हूँ। जो व्यक्ति मेरे इन नामों का कीर्तन करता है, वह माया के बन्धन को तोड़कर मेरा स्थान प्राप्त करता है।’ इस प्रकार भगवती दुर्गा देवताओं और ब्राह्मणों को उपदेश देकर अन्तर्धान हो गयीं।

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