श्री दुर्गाष्टोत्तर शतनामस्तोत्रम् लिरिक्स अर्थ सहित

॥ श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

दुर्गाष्टोत्तर शतनाम,

जिसे दुर्गा स्तोत्र भी कहा जाता है, एक प्रसिद्ध हिन्दू स्तोत्र है जो मां दुर्गा की महिमा और शक्ति की प्रशंसा करता है । यह स्तोत्र 108 नामों से मिलकर बना है, जिनका पाठ करने से भक्त को शांति, सुख, और समृद्धि प्राप्त होती है । इन नामों का उच्चारण और स्मरण मन को शुद्ध करता है और मां दुर्गा के प्रति भक्ति बढ़ाता है ।

इस स्तोत्र के पाठ के लाभ निम्नलिखित हैं 1. ** भक्ति और शक्ति की वृद्धि ** दुर्गाष्टोत्तर शतनाम के पाठ से मां दुर्गा में श्रद्धा और भक्ति का विकास होता है । यह भक्ति और शक्ति को बढ़ाता है जो जीवन को सहायक बनाता है ।

2. ** रोग निवारण ** इस स्तोत्र के पाठ से रोगों का नाश होता है और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का उन्नति होता है ।

3. ** भय का नाश ** दुर्गाष्टोत्तर शतनाम के पाठ से भय और अंधकार का नाश होता है । यह भक्त को साहस और निर्भीकता प्रदान करता है ।

4. ** समृद्धि की प्राप्ति ** इस स्तोत्र के पाठ से धन, समृद्धि, और सफलता की प्राप्ति होती है ।

5. ** आत्म- शुद्धि ** दुर्गाष्टोत्तर शतनाम के पाठ से मानव का चित्त और आत्मा पवित्र होती हैं । इसके अतिरिक्त, यह स्तोत्र भक्ति और आध्यात्मिक विकास का एक अच्छा साधन है । इसका नियमित पाठ करने से जीवन में स्थिरता और संतुलन बना रहता है और मां दुर्गा के आशीर्वाद से व्यक्ति के मार्ग में सफलता आती है ।

॥ श्रीदुर्गायै नमः ॥

ईश्वर उवाच

शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने । यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ॥ १ ॥

ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी ।आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ॥ २ ॥

पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः । मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः ॥ ३ ॥

सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी । अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः ॥ ४॥

शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा। सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ॥ ५ ॥

अपर्णानेकवर्णा च पाटला  पाटलावती। पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी ॥ ६ ॥

अमेयविक्रमा क्रूरा  सुन्दरी सुरसुन्दरी। वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ॥ ७ ॥

ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा । चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः ॥ ८ ॥

विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा । बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना ॥ ९ ॥

निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी । मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ १० ॥

सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी । सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ॥ ११ ॥

अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी। कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ॥ १२ ॥

अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा। महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ।। १३॥

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी । नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ॥ १४ ॥

शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी। कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ॥ १५॥

य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम् । नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ॥ १६ ॥

धनं धान्यं सुतं जायां ‘हयं हस्तिनमेव च। चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ॥ १७ ॥

कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् । पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ॥ १८॥

तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि। राजानो दासतां यान्ति  राज्यश्रियमवाप्नुयात् ॥ १९ ॥

गोरोचनालक्तककुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ॥ २० ॥

भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते। विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ॥ २१ ॥

इति श्रीविश्वसारतन्त्रे दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम् ।

शंकरजी पार्वतीजीसे कहते हैं- कमलानने! अब मैं अष्टोत्तरशतनामका वर्णन करता हूँ, सुनो; जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण) मात्रसे परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं ॥ १ ॥ १-ॐ सती, २-साध्वी, ३-भवप्रीता (भगवान् शिवपर प्रीति रखनेवाली), ४-भवानी, ५-भवमोचनी (संसारबन्धनसे मुक्त करनेवाली), ६-आर्या, ७-दुर्गा, ८-जया, ९-आद्या, १०-त्रिनेत्रा, ११-शूलधारिणी, १२-पिनाकधारिणी, १३-चित्रा, १४-चण्डघण्टा (प्रचण्ड स्वरसे घण्टानाद करनेवाली), १५-महातपा (भारी तपस्या करनेवाली), १६-मन (मनन- शक्ति), १७-बुद्धि (बोधशक्ति), १८-अहंकारा (अहंताका आश्रय), १९-चित्तरूपा, २०-चिता, २१-चिति (चेतना), २२-सर्वमन्त्रमयी, २३-सत्ता (सत्-स्वरूपा), २४-सत्यानन्दस्वरूपिणी, २५-अनन्ता (जिनके स्वरूपका कहीं अन्त नहीं), २६ भाविनी (सबको उत्पन्न करनेवाली), २७-भाव्या (भावना एवं ध्यान करनेयोग्य), २८-भव्या (कल्याणरूपा), २९-अभव्या (जिससे बढ़कर भव्य कहीं है नहीं), ३०-सदागति, ३१-शाम्भवी (शिवप्रिया), ३२-देवमाता, ३३-चिन्ता, ३४-रत्नप्रिया, ३५-सर्वविद्या, ३६-दक्षकन्या, ३७-दक्षयज्ञविनाशिनी, ३८-अपर्णा (तपस्याके समय पत्तेको भी न खानेवाली), ३९-अनेकवर्णा (अनेक रंगोंवाली), ४०-पाटला (लाल रंगवाली), ४१-पाटलावती (गुलाबके फूल या लाल फूल धारण करनेवाली), ४२-पट्टाम्बरपरीधाना (रेशमी वस्त्र पहननेवाली), ४३-कलमंजीररंजिनी (मधुर ध्वनि करनेवाले मंजीरको धारण करके प्रसन्न रहनेवाली), ४४-अमेयविक्रमा (असीम पराक्रमवाली), ४५-क्रूरा (दैत्योंके प्रति कठोर), ४६-सुन्दरी, ४७-सुरसुन्दरी, ४८-वनदुर्गा, ४९-मातंगी, ५०-मतंगमुनिपूजिता, ५१-ब्राह्मी, ५२-माहेश्वरी, ५३-ऐन्द्री, ५४-कौमारी, ५५-वैष्णवी, ५६-चामुण्डा, ५७-वाराही, ५८-लक्ष्मी, ५९-पुरुषाकृति,६०-विमला, ६१-उत्कर्षिणी, ६२-ज्ञाना, ६३-क्रिया, ६४-नित्या, ६५ बुद्धिदा, ६६-बहुला, ६७-बहुलप्रेमा, ६८-सर्ववाहनवाहना, ६९-निशुम्भ-शुम्भहननी, ७०-महिषासुरमर्दिनी, ७१-मधुकैटभहन्त्री, ७२-चण्डमुण्डविनाशिनी, ७३-सर्वासुरविनाशा, ७४-सर्वदानवघातिनी, ७५-सर्वशास्त्रमयी, ७६-सत्या, ७७-सर्वास्त्रधारिणी, ७८-अनेकशस्त्रहस्ता, ७९- अनेकास्त्रधारिणी, ८०-कुमारी, ८१-एककन्या, ८२-कैशोरी, ८३-युवती, ८४-यति, ८५-अप्रौढा, ८६-प्रौढा, ८७-वृद्धमाता, ८८-बलप्रदा, ८९-महोदरी, ९०-मुक्तकेशी, ९१ घोररूपा, ९२-महाबला, ९३-अग्निज्वाला, ९४-रौद्रमुखी, ९५-कालरात्रि, ९६ तपस्विनी, ९७-नारायणी, ९८- भद्रकाली, ९९-विष्णुमाया, १००-जलोदरी, १०१-शिवदूती, १०२-कराली, १०३-अनन्ता (विनाशरहिता), १०४-परमेश्वरी, १०५-कात्यायनी, १०६-सावित्री, १०७-प्रत्यक्षा, १०८-ब्रह्मवादिनी ॥ २- १५ ॥

देवी पार्वती! जो प्रतिदिन दुर्गाजीके इस अष्टोत्तरशतनामका पाठ करता है, उसके लिये तीनों लोकोंमें कुछ भी असाध्य नहीं है ॥ १६
वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्म आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्तमें सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है ॥ १७ ॥ कुमारीका पूजन और देवी सुरेश्वरीका ध्यान करके पराभक्तिके साथ उनका पूजन करे, फिर अष्टोत्तरशत- नामका पाठ आरम्भ करे ॥ १८ ॥ देवि ! जो ऐसा करता है, उसे सब श्रेष्ठ देवताओंसे भी सिद्धि प्राप्त होती है। राजा उसके दास हो जाते हैं। वह राज्यलक्ष्मीको प्राप्त कर लेता है ॥ १९ ॥ गोरोचन, लाक्षा, कुंकुम, सिन्दूर, कपूर, घी (अथवा दूध), चीनी और मधु इन वस्तुओंको एकत्र करके इनसे विधिपूर्वक यन्त्र लिखकर जो विधिज्ञ पुरुष सदा उस यन्त्रको धारण करता है, वह शिवके तुल्य (मोक्षरूप) हो जाता है ॥ २० ॥ भौमवती अमावास्याकी आधी रातमें, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्रपर हों, उस समय इस स्तोत्रको लिखकर जो इसका पाठ पाठ करता है वह सम्पत्ति शाली होता है

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