ये दो दिन का मेला रहेगा कायम न जग का झमेला रहेगा
साथ क्या जायेगा !
रे मन ! ये दो दिन का मेला रहेगा । कायम न जग का झमेला रहेगा ॥
किस काम का ऊँचा जो महल तू बनायेगा ।
किस काम का लाखों का जो तोड़ा कमायेगा ॥
रथ हाथियों का झुण्ड भी किस काम आयेगा ।
तू जैसा यहाँ आया था, वैसा ही जायेगा ।
तेरे सफर में सवारी की खातिर, कन्धों पर ठठरी का ठेला रहेगा ॥
रे मन..।।
कहता है ये दौलत कभी आयेगी मेरे काम ।
पर यह तो बता ! धन हुआ किसका भला गुलाम ।।
समझा गये उपदेश हरिश्चन्द्र, कृष्ण, राम ।
दौलत तो नहीं रहती है, रहता है सिर्फ नाम ॥
छूटेगी सम्पत्ति यहाँ की यहीं पर, तेरी कमर में न धेला रहेगा ॥
रे मन..।।
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