भाव का भूखा हूँ मैं भाव ही एक सार है लिरिक्स भजन
भाव ही एक सार है
भाव का भूखा हूँ मैं और भाव ही एक सार है।
भाव से मुझको भजे तो भव से बेड़ा पार है ॥
अन्न धन और वस्त्र भूषण कुछ न मुझको चाहिये ।
आप हो जावे मेरा बस पूर्ण यह सत्कार है ॥१॥
भाव बिन सब कुछ भी दे डाले तो मैं लेता नहीं ।
भाव से एक फूल भी दे तो मुझे स्वीकार है ॥२॥
भाव बिन सूनी पुकारें मैं कभी सुनता नहीं ।
भाव पूरित टेर ही करती मुझे लाचार है ॥३॥
भाव जिस जन में नहीं उसकी मुझे चिन्ता नहीं ।
भाव वाले भक्त का भरपूर मुझ पर भार है ॥४॥
मुझ में ही जो भाव रख कर लेते हैं मेरी शरण ।
उनका और मेरे हृदय का एक रहता तार है ॥५॥
बांध लेते हैं मुझे यों भक्त दृढ़ जंजीर में ।
इस लिये इस भूमि पर होता मेरा अवतार है ॥६॥
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