आरती श्री नर्मदा जी की
ओ३म् जय जगदा नन्दी,
भैया जय आनन्द कन्दी।
ब्रह्मा हरी हर शंकर सेवा,
शिव हरि शंकर रुद्री पालन्ती ।।
ओ३म् जय जगदा० ॥१॥
देवी नारद शारद तुम वरदायक,
अभिनव पदचण्डी ।
सुन नर मुनि जन सेवत,
सुन नर मुनि० शारद पदवन्ती ।।
ओ३म् जय जगदा० ॥२॥
देवी धूम्रक वाहन राज,
वीणा वादयन्ती ।
झूमकत झूमकत झूमकत,
झननन झननन० रमती राजंती ।
ओ३म् जय जगदा० ॥३॥
देवी बाजत ताल मृदंगा,
सुर मंडल रमती ।
तोड़ीतान् तोड़ीतान् तोड़ीतान्
तुरड़ड़ तुरड़ड़ रमती सुरवन्ती ।।
ओ३म् जय जगदा० ॥४॥
देती सकल भुवन पर आप विराजत,
निश दिन आनन्दी ।
गावत गंगा शंकर सेवत रेवाशंकर,
तुम भव मेटन्ती ।।
ओ३म् जय जगदा० ॥५ ॥
मैया जी को कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती ।
अमरकंठ में विराजत घाटनघाट०,
कोटि रत्न ज्योति ॥
ओ३म् जय जगदा० ॥ ६ ॥
मेया जी की आरती निशदिन पढ़िगावें,
हो सेवा जुग जुग न गावें।
जगत शिवानन्द स्वामी जपत हरि०,
मनवांछित फल पावें ॥
ओ३म् जय जगदा० ॥७ ॥