।।रुद्राष्टकम् लिरिक्स।।
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं ।
निजंनिर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाश वासं भजेऽहं ।
निराकार मोंकारमूलं तुरीयं, गिरा ग्यान गोतीत मीशं
गिरीशं ।
करालं महाकालकालं कृपालं, गुणागार संसारपार
नतोऽहं ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गंभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा
श्रीशरीरं ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कंठेभुजंगा ॥
चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकंठ
दयालं ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखंडं अजं
भानुकोटिप्रकाशं ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सज्जनानन्द दाता पुरारी ।
चिदानंद संदोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो
मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नराणां ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां, नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं ।
जरा जन्म दुःखौद्य तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो
रूद्राष्टकमिदं प्रोक्त विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥